सोशल डिस्टेन्सिंग शायरी (Social Distancing Shayari):
इस कोरोना काल में हमें social distancing का सही मतलब पता चला आजकल कोरोना काल में social distancing बनाए रखना बोहत ज़रूरी हो गया है |हम आपके लिए social distancing shayari लेकर आए हैं ,जो आप लोगों को ज़रूर पसंद आएगी |
Social Distancing Shayari

1)मुमकिन है यही दिल के मिलाने का सबब हो
ये रुत जो हमें हाथ मिलाने नहीं देती
२)कुछ रोज़ नसीर आओ चलो घर में रहा जाए
लोगों को ये शिकवा है कि घर पर नहीं मिलता
3)हाल पूछा न करे हाथ मिलाया न करे
मैं इसी धूप में ख़ुश हूँ कोई साया न करे
4)अब नहीं कोई बात ख़तरे की
अब सभी को सभी से ख़तरा है
5)क़ुर्बतें लाख ख़ूब-सूरत हों
दूरियों में भी दिलकशी है अभी
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6)कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो
7)डर से बड़ा कोई वायरस नहीं
हिम्मत से बड़ी कोई ताक़त नही ।

8)कुछ दिन तो दूर रहना
जिंदगी भर साथ रहने के लिए
9)आजकल दूरियां कुछ बढ़ सी गई है
लेकिन तेरे हिस्से का वक्त आज भी तन्हा गुजरता है
10)तेरा मेरा दिल का रिश्ता भी अजीब है
मीलों की दूरियां है और धड़कन क़रीब है ।
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11)खुद के लिए एक सजा मुकर्रर कर ली मैंने
तेरी खुशियों की खातिर तुझसे दूरियां चुन ली मैंने |
12)मोहब्बत में फासले भी जरूरी है साहब
जितनी दूरी उतना ही गहरा रंग चढ़ता है|
13)ना क़रीब ना तू दूर जा ये जो फासला है ये ठीक है
ना गुज़र हदों से ना हद बता यही दायरा है ये ठीक है |

14)सारे मंजर हसीन लगते हैं
दूरियां कम ना हो तो बेहतर है |
15)हर चंद कुए यार बोहत फासले पर है
बदले हुए अभी से मिजाज आसमां के है |
Lockdown shayari
16)दूरियां समझने में देर कुछ तो लगती है
रंजिशों के मिटने में देर कुछ तो लगती है |
17)मिलते हैं मोड़ हर मक़ाम पर
बढ़ती गई हैं दूरियां मंजिल जगह-जगह |
18)थकना भी लाजमी थी कुछ काम करते करते
कुछ और थक गया हूं आराम करते-करते ।

19)ये जो मिलाते फिरते हो तुम हर किसी से हाथ
ऐसा ना हो कि धोने पड़ें जिंदगी से हाथ ।
20)रास्ते हैं खुले हुए सारे
फिर भी यह जिंदगी रुकी हुई है ।
21)शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है
सोचता रोज हूं मैं घर से नहीं निकलूँगा ।
22)दिल तो पहले ही जुदा था यहां बस्ती वालों
क्या कयामत है कि अब हाथ मिलाने से भी गए ।
23)टेंशन से मरेगा ना कोरोना से मरेगा
एक शख्स तेरे पास ना होने से मरेगा ।
24)हाल पूछा ना करो हाथ मिला या ना करो
मैं इसी धूप में खुश हूं कोई साया न करो ।
25)एक ही शहर में रहना है मगर मिलना नहीं
देखते हैं ये अज़ीयत भी गवारा करके ।
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26)भूख से या वबा से मरना है
फैसला आदमी को करना है ।
27)घूम फिर कर ना कत्लेआम करें
जो जहां है वही आराम करें ।
28)कपड़े बदल कर बाल बना कर कहां चले हो किसके लिए
रात बोहत काली है नासिर घर में रहो तो बेहतर है ।
29)अफसोस ये वबा के दिनों की मोहब्बतें
एक दूसरे से हाथ मिलाने से भी गए ।
30)घर में रहिए कि बाहर है एक रक़्स बालाओं का
इस मुकाम -में-वहशत में नादा निकलते हैं ।